काली रात बीत गईं
सुबह होने को हैं
इन बंद आखों के पीछे छिपा
इक ख्वाब अब टूटने को हैं
इन आंखो के पीछे
महफ़ूज है मेरा ख्वाब
बस अब आंख खुलते ही
टूटकर बिखर जायेगा
फिर चुभेगा एक टुकडा
ख़्वाब का इन आखों में
और खारे आँसू बनके
मेरा दर्द बह जायेगा
सुबह होने को हैं
इन बंद आखों के पीछे छिपा
इक ख्वाब अब टूटने को हैं
इन आंखो के पीछे
महफ़ूज है मेरा ख्वाब
बस अब आंख खुलते ही
टूटकर बिखर जायेगा
फिर चुभेगा एक टुकडा
ख़्वाब का इन आखों में
और खारे आँसू बनके
मेरा दर्द बह जायेगा
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